Lekhika Ranchi

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रविंद्रनाथ टैगोर की रचनाएं--यह स्वतंत्रता 2



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बम्बई पहुंचकर पाठक अपनी मामी से पहली बार मिला। वह उसके आने से कुछ प्रसन्न न हुई; क्योंकि उसके तीन बच्चे ही काफी थे एक और चंचल लड़के का आ जाना उसके लिए आपत्ति थी।
ऐसे लड़के के लिए उसका अपना घर ही स्वर्ग होता है, उसके लिए एक नए घर में नए लोगों के साथ रहना बहुत कठिन हो गया।
पाठक को यहां पर सांस लेना कठिन हो गया। वह रात को प्रतिदिन अपने नगर के स्वप्न देखा करता और वहां जाने की इच्छा करता रहता। उसको वह स्थान याद आता जहां वह पतंग उड़ाता था और जहां वह जब कभी चाहता जाकर स्नान करता था। मां का ध्यान उसे दिन-रात विकल करता रहता। उसकी सारी शक्ति समाप्त हो गई...अब स्कूल में उससे अधिक कमजोर कोई विद्यार्थी न था। जब कभी उसका अध्यापक उससे कोई प्रश्न करता, तो वह मौन खड़ा हो जाता और चुपचाप अध्यापक की मार सहन करता। जब दूसरे लड़के खेलते तो वह अलग खड़ा होकर घरों की छतों को देखा करता।
एक दिन उसने बहुत साहस करके अपने मामा से मालूम किया- "मामाजी, मैं कब तक घर जाऊंगा?"
मामा ने उत्तर दिया- "ठहरो, जब तक कि छुट्टियां न हो जाएं।"
किन्तु छुट्टियों में अभी बहुत दिन शेष थे, इसलिए उसको काफी प्रतीक्षा करनी पड़ी। इस बीच में एक दिन उसने अपनी किताब खो दी। अब उसको अपना पाठ याद करना बहुत कठिन हो गया। प्रतिदिन उसका अध्यापक उसे बड़ी निर्दयता के साथ मारता था। उसकी दशा इतनी खराब हो गई कि उसके मामा के बेटे उसे अपना कहते हुए शरर्माते थे। पाठक मामी के पास गया और कहने लगा- "मैं स्कूल न जाऊंगा, मेरी पुस्तक खो गई है।"
मामी ने क्रोध से अपने होंठों को चबाते हुए कहा- "दुष्ट! मैं तुझको कहां से महीने में पांच बार पुस्तक खरीद कर दूं?"
इस समय पाठक के सिर में दर्द उठा, वह सोचता था कि मलेरिया हो जाएगा; किन्तु सबसे बड़ा सोच-विचार यह था कि बीमार होने के पश्चात् वह घर वालों के लिए एक आपत्ति बन जायेगा।
दूसरे दिन प्रात: पाठक कहीं भी दिखाई न दिया। उसको चारों तरफ खोजा गया किन्तु वह न मिला। वर्षा बहुत अधिक हो रही थी और वे व्यक्ति जो उसे खोजने गये, बिल्कुल भीग गये। आखिरकार विशम्भर ने पुलिस को सूचना दे दी।

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